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अनकही बातें

वो अखंड अभिशाप था, हां वो मेरा पाप था !

ना कोई पराकाष्ठा, ना कोई आधार था !

युं तो मैं अभिमानवश, हर पाप से अनजान था !

जब खुली ये नींद मेरी, अपने आप से परेशान था !


जो वो मेरा एक मान था, खुद से भी नाराज था !

जीतने को मेरे लिए, मुझसे ही लड़ने को तैयार था !

खुद को ही झकझोर रख दे, बस यही अब मांग था !

जीत वो गया था मुझसे, जो में झुकने को तैयार था !

- जो में झुकने को तैयार था

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