वीर अभिमन्यु
- CLAT Mentor Neeraj Sir
- Jul 25, 2020
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सुर्य तो कोई और था, सुर्य पुत्र तो कोई और था !
अर्जुन तो कोई और था, कर्ण तो कोई और था !
थी मगर उसमें छिपी कहीं, सुर्य किरण कोई और था !
सुभद्रा का वो लाल था, श्री कृष्ण का वो मान था !
यु तो वो एक बाल था, अर्जुन का आधार था !
देखने में वो यू यशश्वी, श्री कृष्ण का ही अंश रूप था !
महारथी तो पता नहीं पर अद्वितीय वो वीर था !
कौन उसको रोकेगा, जो वों कृष्णा शिष्य पार्थपुत्र था !
वो दिन भी अब आ चुका था, जिस दिन के लिए श्री कृष्ण ने उसे रचा था !
अब रण भूमि में कौरवों की सेना समीप थी, पार्थ आज दूर कहीं, फिर ना कोई आस थी !
आ खड़ा वो वीर बालक, पांडवो की शान था !
गर्भ में मिली वो विद्या, अभिमन्यु का अभिमान था !
दुरुयोधन ने जो चाल चली थी, चक्रव्यूह गुरु द्रोण ने रची थी !
सुर्य का वो तेज किरण, आग में जलती गगन !
आज वो निकला कहीं था, गुरु द्रोण के सामने खड़ा था !
कांप उठती थी काल भी, जिन महारथियों के सामने !
आज एक सोलह वर्ष का बालक सामने खड़ा था !
सात से जो लड़े याथाचित, श्री कृष्ण शिष्य वो बाल था !
अर्जुन से भी अधिक तेज जिसका, सर्वश्रेष्ठ महावीर था !
कर चुका वो अंत अर्जुन - कर्ण द्वांद का, सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर था !
हर एक को घायल किया, किंचित भी ना वो भयभीत था !
कौन उसे करे पराजित, जों ना वो माधव देय बलिदान था !
हार और जीत का तो पता नहीं पर,
सूर्यास्त के पहले ही उस दिन, सुर्य तो कहीं खो गया था,
सुर्य तो कहीं खो गया था !!
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