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वीर अभिमन्यु

सुर्य तो कोई और था, सुर्य पुत्र तो कोई और था !

अर्जुन तो कोई और था, कर्ण तो कोई और था !

थी मगर उसमें छिपी कहीं, सुर्य किरण कोई और था !


सुभद्रा का वो लाल था, श्री कृष्ण का वो मान था !

यु तो वो एक बाल था, अर्जुन का आधार था !

देखने में वो यू यशश्वी, श्री कृष्ण का ही अंश रूप था !

महारथी तो पता नहीं पर अद्वितीय वो वीर था !

कौन उसको रोकेगा, जो वों कृष्णा शिष्य पार्थपुत्र था !


वो दिन भी अब आ चुका था, जिस दिन के लिए श्री कृष्ण ने उसे रचा था !

अब रण भूमि में कौरवों की सेना समीप थी, पार्थ आज दूर कहीं, फिर ना कोई आस थी !


आ खड़ा वो वीर बालक, पांडवो की शान था !

गर्भ में मिली वो विद्या, अभिमन्यु का अभिमान था !

दुरुयोधन ने जो चाल चली थी, चक्रव्यूह गुरु द्रोण ने रची थी !


सुर्य का वो तेज किरण, आग में जलती गगन !

आज वो निकला कहीं था, गुरु द्रोण के सामने खड़ा था !

कांप उठती थी काल भी, जिन महारथियों के सामने !

आज एक सोलह वर्ष का बालक सामने खड़ा था !


सात से जो लड़े याथाचित, श्री कृष्ण शिष्य वो बाल था !

अर्जुन से भी अधिक तेज जिसका, सर्वश्रेष्ठ महावीर था !

कर चुका वो अंत अर्जुन - कर्ण द्वांद का, सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर था !

हर एक को घायल किया, किंचित भी ना वो भयभीत था !

कौन उसे करे पराजित, जों ना वो माधव देय बलिदान था !

हार और जीत का तो पता नहीं पर,

सूर्यास्त के पहले ही उस दिन, सुर्य तो कहीं खो गया था,

सुर्य तो कहीं खो गया था !!

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