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दानवीर कर्ण

Updated: Jul 25, 2020

वो तो कहां सुर्य पुत्र था, सूर्यास्त क्या उसे मरने देता!

जो सभी ने भीष्म की रण के नीति को मान देता !

तोड़ वो रण के सारे नियम, अधर्म को ऐसे जीया था !

दुर्योधन का तो पता नहीं, अंग राज मृत्यु पा रहा था !


वो तो कवच कुंडल के संग हुआ था, या यूं कहे कि विजयी ही पैदा हुआ था !

पर वो तो बड़ा दानी हुआ था, स्वयं इन्द्र को ही दान दिया था !

कहते तो थे लोग सुत्त पुत्र पर सबसे बड़ा अभिमानी हुआ था !


था वो अभागा, उम्र भर मातृ स्नेह से वंचित रहा था !

फिर उसी स्वार्थी माता को, पुत्र प्राण दान देकर , कोख कों संचित रखा था !


पाप उसने क्या किया था, जो प्रतिस्पर्द्धा उसने अर्जुन से रखा था !

बनना उसे वो वीर था, जो द्रोण ने अर्जुन को चुना था !

जो द्रोण से वंचित रहा था, परशुराम को उसने चुना था !

बोल अपने आप को ब्राह्मण, गुरु से छल जो किया था !

क्या पाप था वो, जो उसने हर दिन मरकर भी जिया था !


सुर्य के उस तेज से पहले ही आशा खो चुका था,

जब भिष्म के उस रण निती को दुर्योधन यूं ही खो दिया था !

कवच और कुंडल से उसने इन्द्र को ही शर्मिंदा किया था !

था वो गुरु का श्राप या फिर स्वयं कृष्ण की कोई चाल थी,

सुर्य तो निकला रहा था, पर ना उसमे आज कोई आग थी !

हो गया धराशाही वो वीर, अभी कहां सूर्यास्त थी,

अभी कहां सूर्यास्त थी ?

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